Thursday, January 1, 2015

नए साल का जश्न जारी है.......

आज की शाम कोई विदा हो रहा था। उसके मन में ख़ामोशी से जाने की हसरत थी। लेकिन लोगों को इसकी परवाह नहीं थी। सुबह से शाम की घड़ियों का लोग इंतज़ार कर रहे थे, जब उसे जाना था। उसके जाने के साथ ही कोई आने वाला था। 

लेकिन इन दोनों लम्हों के बीच कुछ लोग इतने खोए हुए थे कि न उन्हें आने वाले की ख़बर थी, न ही जाने वाले का कोई ख़्याल था। उनके लिए तो सालों का आना-जाना यानि बदलना बस एक पल (सेकेंड) का मामला था।

लेकिन कमरे की घड़ी वही थी, उसकी टिकटिक वही थी। रोज़ की भूख वहीं थी, खाने का इंतज़ाम करना था। सुबह के चाय की तलब भी कायम थी, उसका भी इंतजाम करना था। सिर्फ़ कैलेंडर बदले थे, लोग भी वही थी। सूरज भी वही था। चाँद भी वही था। रात भी वही थी। सड़क भी वही थी। लोगों की आवाजाही में उतनी ही हड़बड़ी थी। लोगों के नाम भी वही थे। पहचान भी वही थी....कुछ सतर्क लोग खोज रहे थे। आख़िर नया क्या है? उन्होंने पूरा घर छान मारा। सारी चीज़ें उलट-पलटकर देख लीं। ख़ुद को भी आईने में बार-बार देखा। चेहरा भी वही था। आईना भी वही था।

इस बदलाव की तलाश के बीच लोगों के फ़ोन आ रहे थे, ह्वाट्स ऐप पर मैसेज आ रहे थे, फ़ेसबुक, ट्विटर पर संदेशों का ट्रैफ़िक बढ़ गया था। सवाल अभी भी क़ायम था कि नया क्या है? न्यू क्या है? NEW...Where is that newness all the people were talking about and someone remind me....The calendar has changed. कैलेंडर बदल गया है। रोज़ कैलेंडर के पन्ने बदलते थे। आज कैलेंडर पुराना पड़ गया है क्योंकि साल बीत गया है। तो कैलेंडर बदलने की ख़ुशी मुबारक हो यही कहा था....मेरे एक दोस्त ने।

लेकिन उनसे भी कहना पड़ेगा कि पुराने कैलेंडर में भी नए साल के एक महीने का जिक्र है ताकि लोगों को हड़बड़ी में कैलेंडर बदलने की जरूरत न पड़े। वैसे भी जबसे फ़ोन स्मार्ट हुआ है तबसे तो घड़ी और कैलेंडर दोनों के दिन लद से गए हैं। हाँ, दोनों का अस्तित्व अभी भी बना हुआ है। लेकिन आख़िर कब तक? कहना मुश्किल है। सालों पहले लोगों को हैप्पी न्यू ईयर की ग्रीटिंग लिखी जाती थी....लोग शब्दों और अच्छी हैंडराइटिंग वाले लोगों की तलाश करते थे ताकि अपने मन की बात कह सकें औऱ उन तक अपनी शुभकामनाएं पहुंचा सकें। नया साल है, लेकिन रोज़मर्रा की ज़िंदगी ज्यों की त्यों जारी है। इसके साथ ही जारी है नए साल का जश्न भी....।

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