Thursday, January 1, 2015

फ़ेसबुकीय मायाजाल की उलझन....

नए नवेले साल 2015 का पहला दिन बीतने को है। लेकिन अभी तक टेलीविजन पर एक नज़र तक नहीं पड़ी है। हाँ, दिन के अख़बार का पन्ना पलटने का मौका जरूर मिला था। इससे एक बात तो साफ़ होती है कि हमारी ख़ुशी और टेलीविजन से दूर रहने का सीधा सा रिश्ता है। इसके अलावा आज के दिन का अधिकांश हिस्सा फ़ेसबुक पर दोस्तों को नए साल की शुभकामनाएं देने में बीता।

इस दौरान एक बात सिद्दत से महसूस हो रही थी कि वर्चुअल दुनिया से दूर रहना हमारे लिए अच्छा है। क्योंकि एक सीमा के बाद 'फ़ेसबुकीय मायाजाल' में उलझना आपके मन से सार्थकता का बोध छीन सकता है। इस दुनिया से आपका मोहभंग कर सकता है। इस बात को समझने के लिए ऐसा करने वाले लोगों के अनुभव को समझने की कोशिश की जा सकती है। कुछ दिन पहले एक मित्र बता रहे थे कि उनको ह्वाट्स ऐप का एडिक्शन है। जब सामने वाला कुछ लिख रहा होता है तो उनको जानने की इच्छा होती है कि सामने वाला आख़िर क्या लिख रहा है? 

इसके साथ-साथ उन्होंने एक बात और कही थी कि फुरसत के लम्हों में लोग देखते हैं कि ह्वाट्स ऐप पर कौन ऑनलाइन है? ताकि उससे चैट कर सकें। इस तरीके से तकनीक लोगों की ज़िंदगी में दबे पाँव दाख़िल हो रही है। पहले यह उनको अपना मुरीद बनाती है। फिर अपनी आदत डलवाती है। उसके बाद आख़िरकार उनको अपने नशे की गिरफ़्त में ले लेती है। तकनीक के इस नशे के एक पहलू के बारे में पता चला तो लगा कि आपके साथ साझा किया जाए ताकि आपके अनुभवों को जाना जा सके कि क्या तकनीक आपको भी ऐसे ही प्रभावित करती है? जैसे मुझे या बाकी अन्य लोगों को। अगर हाँ, तो नए साल में तकनीक के इस्तेमाल को लेकर भी नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।

No comments:

Post a Comment