Monday, January 5, 2015

बात न करने की कोई मजबूरी सी है...

इस नए साल में उनसे एक दूरी सी है
बात न करने की कोई मजबूरी सी है
उनकी ख़ामोशी देखकर चुप मैं भी हूँ
मेरी बेरुखी देखकर ख़ामोशी वो भी हैं
न वो कुछ कहते हैं न मैं कुछ बताता हूँ
चुपके-चुपके सारा हाल पता चलता है
नए दौर के रिश्तों की है अजब सी यारी
चंद रोज़ की ख़ुशी, उछाह और उल्लास है
उसके बाद तो पूरा चाँद हौले से ढलता है............

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