Wednesday, December 31, 2014

नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं दोस्तों..

हर साल नया साल आता है। यह साल भी ठीक एक साल पहले उतना ही नया और ताज़ा था, जितना आने वाला साल है। विदा होने वाले साल को लेकर वही उत्साह था, जो नए साल को लेकर है। लेकिन दोनों पलों की सच्चाइयों और वास्तविकताओं के बीच एक फ़ासला है। 

तो ऐसे में जब साल का आख़िरी दिन भी ढलने के इंतज़ार में है, चलते-चलते बहुत थक गया है और गुजरने की चाह में है। आप सभी को नए साल के आगमन की ढेर सारी शुभकामनाएं। नया साल ख़ुशियों के अनगिनत लम्हों के साथ ज़िंदगी में दाख़िल हो। इसी भावना के साथ नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाइयां।

अपने ब्लॉग का नया पता भी आपको बता दूँ ताकि संवाद का सिलसिला निरंतर जारी रहे। तकनीक संवाद में बाधक न बने। अपनी नई वेबसाइट का नाम है एजुकेशन मिरर डॉट ओआरजी। इसका पता है https://educationmirror.org/  नए साल में रचनात्मकता की अभिव्यक्ति का क्रम बना रहे और हमारा संवाद भी। इन्ही शुभकामनाओं के साथ विदा 2014 और स्वागत 2015। हैप्पी न्यू ईयर दोस्तों...नए साल में आप सभी का स्वागत है। 

Thursday, September 25, 2014

अनुवादक कैसा प्राणी होता है?

हिंदी और अंग्रेज़ी का विरोध पुराना है
लेकिन बदलते दौर में रिश्ते भी बदले
दोनों को जोड़ता है अनुवाद का पुल
इसका काम को अंजाम देने वाले प्राणी
को अनुवादक की संज्ञा से नावाजा जाता है.

अनुवादके के बारे में कहा जाता है कि
उसको स्त्रोत और लक्ष्य भाषा दोनों पर
एक समान अधिकार होना चाहिए
ताकि अनुवाद कार्य में शब्दों के अभाव
की बाधा न पड़े....

इस सिलसिले में एक प्रोफ़ेसर कह रहे थे कि
अनुवादक के पास विपुल शब्द भंडार होता है
इस मामले में तो वह लेखक को भी मात देता है
लेकिन शायद वह भूल रहे थे कि एक लेखक भी
अच्छा और काबिल-ए-तारीफ़ अनुवादक हो सकता है

कुछ पुराने अनुवादक शायद अपनी बातों में
मिलाते हैं थोड़ा अतिश्योक्ति का पुट ताकि
बचा रहे अनुवाद का रोमांच और रहस्य
छात्रों की जिज्ञासा भी कायम रहे क्योंकि
अनुवाद तो करके आने वाली चीज़ हैं....

रुचि, अध्ययन और लगातार मेहनत से
एक कृति बदलती है रफ़्ता-रफ़्ता कलेवर
उसे भी तलाश होती है एक पाठक की
जो उसे पढ़े और उसके भाव को पहुंचा सके
एक भाषा से परे दूसरी भाषाओं के लोगों तक
ताकि एक छोर से शुरू हुआ संवाद सफ़र
निरंतर आगे बढ़ता रहे......

Wednesday, September 24, 2014

धूप और छांव की इबारतें

धूप और छांव की इबारतें
किसी दीवाने की तरह
रोज़ कुछ लफ़्ज लिखती है
कोई गीत सा गुनगुनाती हैं
अपने दिल की बात कहती हैं
शायद ऐसी ही सुंदर इबारतें
चांदनी रात भी लिखती होगी
अपने पढ़े जाने की उम्मीद में...

Sunday, September 7, 2014

आज़ादी का लोकगीत गाती चिड़िया..

शहरी कंकरीट के जंगलों में
कुछ चिड़ियाएं बेखौफ़ नहाती हैं
ऐसा लगता है शहरी माहौल में
वे आज़ादी का लोकगीत गाती है...

उनको पानी से खेलता देखकर
बचपन के दिन याद आते हैं
धूल में लोटती और फुदकती
गौरैया का झुंड याद आता है

वह निगेटिव का दौर था
जहां से निकलती थी तस्वीरें
ब्लैक एण्ड ह्वाइट की शक्ल में
धीर-धीरे उनमें रंग घुलने लगे

लेकिन तब भी कैमरे पहुंच के बाहर थे
चिड़िया का शिकार करने वाली बंदूक
किताब के पाठों से चुपचाप निकलकर
मन की कल्पनाओं में घर कर लेती थी

सिद्धार्थ के पाठ को बार-बार दोहराने के बाद भी
मारने वाले से बचाना वाला बड़ा होता है यह भाव
केवल शब्दों का गुलदस्ता बना रहा जिसके अर्थ
कागजी फूलों से ख़ुशबू की तरह नदारद थे
 
आज पानी में नहाती चिड़ियों को देखकर बीते दिन याद आए
धूल में नहाती गौरैया और पानी में नहाती चिड़ियाओं का झुंड
मन की तमाम स्मृतियों को सतह पर वापस छोड़ गया है
कुछ पलों के लिए फिर से जीवन का हिस्सा बनने के लिए

आज़ादी का कोई लोकगीत रचने के लिए
जिसका श्रेय पानी में नहाती चिड़ियों को जाता है
हमने तो बस उस लम्हे की ख़ामोशी को
कुछ शब्द भेंट किए हैं.....

Sunday, August 31, 2014

'अनुवाद' सिर्फ़ एक शब्द नहीं

'अनुवाद' सिर्फ़ एक शब्द नहीं
हमारे जीवन का एक भाव है
जो निरंतर इशारे से कहता है
यहां 'मौलिकता' का अभाव है

मैंने देखा अनुवाद की आंधी में
स्वतंत्रता का तिनके सा बहना
रचनात्मकता का मौन सिसकना
दूसरों की तरफ़ बेबस निरखना

अनुवाद कहने के लिए तो कला है
बाज़ार में मुनाफ़े का कारोबार भी
बेहतर आजीविका का एक जरिया
और तरक्की के लिए 'नया नज़रिया

अनुवाद की पाठशाला में सीखे सबक
लगता तो है कि बहुत ही काम के हैं
कभी-कभी सिद्दत से महसूस होता है जैसे
आने वाले दिन मौलिकता के विश्राम के हैं

इन सारे विचारों का निष्कर्ष एक नहीं
अनुवादकों के विचारों में मतैक्य नहीं
लेकिन ख़ुद को भ्रम में डालने से बेहतर है
हम मौलिक लेखन का सतत अभ्यास करें

लिखने की कला का सदैव परिष्कार करें
कोई भी अनुवाद बग़ैर हमारी भाषा के
बेहतर अभिव्यक्ति को तरस जाएगा
इसलिए नए रास्तों की तलाश की जरूरत है
 
जैसे विविध भाषाओं में अध्ययन जरूरी है
उसी तरह अपनी बोली में बात करना और
अपनी भाषा में लिखने का अभ्यास करना
ताकि रचनात्मकता को अनुवाद के से परे
एक नया आयाम दिया जा सके
जिसकी परिभाषा और विस्तार हमें खुद तय करना है. 

Saturday, August 30, 2014

जो शहर पराया लगता था..

जो शहर पराया लगता था
आज अपना सा लगता है
अज़नबी रास्ते भी आजकल
जरा पहचाने से लगते हैं

जिन गलियों से चुपचाप गुजरते थे कभी
उन गलियों में आज हमराह भी मिलते हैं
गुमनामी के बादल धीरे-धीरे छंट रहे हैं
ऐसा लगता है मानो अज़नबी शाखों से
नए परिचय की तमाम कोंपलें फूट रही हैं...

यह शहर अपनी पहचान बदल रहा है
अज़नबी से धीरे-धीरे परिचित हो रहा है
जो शहर कभी बहुत पराया लगता था
आज अपना बनाने की कोशिश कर रहा है...