जो कहानी तुम्हारी है। वही मेरी भी है। यही कहा था जाते-जाते उसने। उसके
शब्दों में सच्चाई थी। उसने कहा कि थोड़ा गुस्सा होना भी स्वाभाविक है।
हर
समय ख़ामोश रहना और हर परिस्थिति में
सिर्फ़ सहना ठीक नहीं होता। कभी-कभी जरूरी होता है स्थितियों का विरोध
भी....क्योंकि हम इंसान हैं। हम जीवन को जीने लायक बनाते हैं। उलझनों से
बाहर निकलने का रास्ता बनाते हैं।
एक-दूसरे को सहारा देते हैं। साथ होने का अहसास देते हैं क्योंकि पता है
कि बहुत सारे रिश्ते औपचारिकताओं के बोझ तले दबे सिसक रहे हैं। कमज़ोर हो
रहे हैं। भुरभुरे हो रहे हैं। दरक रहे हैं। अपनी ऊंचाई से नीचे सरक रहे
हैं। ऐसी परिस्थिति में उम्मीदों को ज़िंदा रखना और हौसलों को उड़ान देना
जरूरी है ताकि नए दौर में जीवन सफ़र को थोड़ा आसान बनाया जा सके।
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